इतिहास
एकत्रित प्रशासनिक रिपोर्टों की जानकारी के अनुसार, राजस्व कानून को छोड़कर ब्रिटिश भारत के सभी केंद्रीय अधिनियम कवर्धा राज्य में लागू थे। दरबार न्यायालय की अध्यक्षता सत्तारूढ़ प्रमुख राज्य का उच्च न्यायालय करता था। दीवान को प्रशासनिक कार्यों के अलावा जिला न्यायाधीश और सत्र न्यायाधीश का कार्य भी आवंटित किया गया था। सहायक दीवान को प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के रूप में और तहसीलदारों को द्वितीय श्रेणी और तृतीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट के रूप में सशक्त किया गया था। कुल 5 फौजदारी अदालतें काम कर रही थीं। अपीलीय और अंतिम अदालत दरबार अदालत थी। दीवानी मामले के लिए दरबार अदालत अंतिम अपीलीय अदालत थी यानी राज्य की सर्वोच्च अदालत। दीवान को जिला न्यायाधीश, सहायक दीवान को सिविल न्यायाधीश वर्ग I तथा तहसीलदारों को सिविल न्यायाधीश वर्ग II की शक्तियाँ प्रदान की गईं। कुल मिलाकर 4 सिविल न्यायालय कार्य कर रहे थे। वर्ष 1945 में राजनांदगांव, कवर्धा, खैरागढ़ और छुईखदान राज्यों को मिलाकर शिवनाथ समूह का गठन किया गया, जिसका मुख्यालय राजनांदगांव में था और जिला न्यायाधीश की शक्तियों का प्रयोग इस समूह द्वारा नियुक्त पीठासीन अधिकारी द्वारा किया जाता था। लेकिन शासक अभी भी अपने राज्यों के सर्वोच्च न्यायालय थे। उसी वर्ष पूर्वी राज्य एजेंसी जिसमें उड़ीसा और छत्तीसगढ़ राज्य शामिल थे, का गठन किया गया और सभी राज्यों के शासकों ने अपनी अपीलीय शक्तियां इस ई.एस.ए. को सौंप दीं। और माननीय न्यायमूर्ति श्री इस्माइल को मुख्य न्यायाधीश के रूप में तैनात किया गया था। ..